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कहानी-- एक अनजान मुसाफिर


कहानी-- एक अनजान मुसाफिर

 
 रात में करीब एक बजकर पार हो गया था।
 वैसे भी वह सुनसान स्टेशन था जहां मुझे उतरना था ।
घर में सब लोगों ने मना किया था, लेकिन फिर भी मुझे उतरना था क्यों कि वह मेरा अपना स्टेशन था।

 उसे स्टेशन से उतर कर करीब 200 किलोमीटर भीतर मेरा अपना गांव था ।

पिछले दिनों बाबा ने चिट्ठी लिखकर कहा था रात की ट्रेन से मत आना।
 यहां भूत-प्रेत का साया मंडरा रहा है। कुछ लोगों को एक लंबी चोटी वाले बाबा दिखते हैं।
 कुछ लोगों को कुछ दिखता है ।
 इसलिए दिन के दिन ही आ जाना लेकिन मुझे ट्रेन की टिकट ही नहीं मिली ।
घर जाने की ललक में मैंने रात का ही टिकट कटा लिया।
 अब ट्रेन को पहुंचना 10:00 बजे तक था लेकिन ट्रेन लेट करती  करती रात के 1:00 बजा दी थी।

 खैर स्टेशन में उतरने के बाद मैंने पीछे पलटकर देखा ।
अंधेरे में लाल डब्बों वाली ट्रेन बड़ी खतरनाक लग रही थी।
 किसी भूतिया एहसासों से कम नहीं थे।
 मैं अपना बैग अपने कंधे पर टांग कर आगे बढ़ता गया ।
ठंड भी बढ़ रही थी। नवंबर का महीना था।
 गांव का वातावरण था ।
साफ सुथरा ,इसलिए ओस भी जमीन पर  पड़ रही थी।
 ऊपर से सर्द हवा।
 थोड़ी दूर बढ़ने के बाद सामने मक्के के खेतों के ठूंठ साफ नजर आ रहे थे ।वहां अभी कुछ खेतों पर बुवाई शुरू नहीं हो पाई थी और एक तरफ मटर और अन्य फसलों के खेत लहलहा रहे थे ।
मैं बजरंगबली का नाम लेता हुआ आगे बढ़ रहा था कि मुझे एक साया नजर आया।

 पहले तो कलेजा मुंह को आ गया लेकिन फिर मैंने हिम्मत की और उस अनजान परछाई से नजरें मिलाने की कोशिश की।
 मैंने उसे पहचाना नहीं।
 उसने कहा का बबुआ भीमा पुर तू जाएगा क्या?

 मैंने कहा हाँ।
उसने कहा
 हम भी चल रहे हैं साथ में। चलो साथ साथ चलते हैं ।
हम दोनों आगे बढ़ते रहे।
 उसने अपने जेब से एक मुट्ठी मटर निकाल कर मेरे हाथों में दिया और बोला लो ठंड में यह मटर खाते चलो, ठंड नहीं लगेगी।

 मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि दांत तो कटकटा रहे थे।
 मैंने उन्हें उठाकर जेब में डाल लिया और चुपचाप आगे बढ़ता गया।
 मैं कनखियों से उसे देखता रहा कहीं यह भूत तो नहीं है?
 मैंने उनसे पूछा
 आप कौन हैं ?आपका नाम क्या है ?आपको कभी गांव में देखा नहीं।

 उसने कहा 
,,हम निरहुआ रिक्शावाला के बाप है ।साझे में खेती करते हैं ।अपना खेती देखने आए थे। अब ज्यादा सवाल ना करो ।रात का टाइम है ।चुपचाप चले चलो नहीं तो कोई देखेगा तो क्या बोलेगा कि  किससे बातें करता जा रहा है। 

 मैं चुपचाप आगे बढ़ता गया ।
गांव के चौराहे पर आने के बाद उसने कहा अब तुम अपने घर जाओ हम अपने घर ।

चाचा जी आपका घर कहां है ?मैं ने पूछा।

उसने कहा 
बस इस घाट से थोड़ा दूर ।
उसने धोबी घाट की तरफ इशारा करके कहा।

 मैंने कहा अच्छा कल हम मिलने आएंगे।
 उसने कहा ठीक है ।
मैं अपने घर चला आया ।
रात में मुझे देखकर घर वालों के होश उड़ गए ।

 बाबा ने मुझे डांटते हुए कहा तुम्हें तो मैंने मना किया था कि रात में नहीं आओगे फिर क्यों आए?

 मैंने सबको बताते हुए कहा कि ट्रेन की टिकट नहीं मिल रही थी अब कोई उपाय नहीं था।

 पैदल आना पड़ा।
 मैंने कहा कोई निहरूआ रिक्शावाला का बाबा था..उस का नाम तो मैंने नहीं पूछा?

 सबके चेहरे उड़ गए ।
बाबा ने कहा 
बेटा, दीनानाथ की तो कल ही मौत हुई है वो भी वही उसके खेतों पर।
 जाने किस जानवर ने उसे अपना शिकार बना लिया..!,,

मैं ठंड में डर से काँप रहा था।लगभग एक घंटे एक भूत के साथ..
सच ही कहते हैं.. अनजान मुसाफिर पर विश्वास नहीं करना चाहिए. ..!
पर अगले ही पल मुझे लगा कि वह तो मेरी रक्षा करने आए थे।
**
सीमा..✍️🌷
©®
#लेखनी कहानी प्रतियोगिता

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7 Comments

Kaushalya Rani

14-Sep-2022 08:51 PM

Nice post

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Achha likha h

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Priyanka Rani

14-Sep-2022 06:47 PM

Beautiful

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